
1- ज़ख्म हर जगह है कहीं मरहम नहीं मिलता, मैं-मैं की रट हर जगह है मगर कहीं हम नहीं मिलता।

2- ज़ख़्मों के बावजूद मेरा हौसला तो देख, तू हँसी तो मैं भी तेरे साथ हँस दिया।

3- वफाओं को धोखों का स्वाद बेधड़क मिल रहा है, ज़ख्मो को मरहम नहीं नमक मिल रहा है।

4- खंजर तो यूँ ही बदनाम है साहब असली जख्म तो ये कम्बख्त लफ्ज़ कर जाते हैं।

5- नमक की क़ीमत सस्ती है बहुत लोग खाते काम छिड़कते ज्यादा है।

6- वो हमे दर्द में देख कर भी खुश थे, हम खुश थे क्यूंकि वो खुश थे।

7- शुक्रिया तुम्हारी याद का मुझे फिर छेड़ने के लिए, मेरे ज़ख्मों को फिर से कुरेदने के लिए।

8- ज़ख्मों को मुस्कराहट के कम्बल से ढक कर, दौड़ तो नहीं पाता पर आगे बढ़ता हूँ सरक कर।

9- देख पा रही हो जो लाल दिल पर ज़ख्म हरे है, किसी और के नहीं ये तुम्हारे ही करे हैं।

10- अपनी शायरी पढ़ अक्सर सोचता हूँ मैं, ये बाते ज़्यादा गहरी या फिर ये ज़ख्म।
11- एक बात जो मुझे सारे जहाँ के सामने रखनी है, ठीक है कौन यहाँ जब सभी के दिल जख्मी है।
12- काश बनाने वाले ने दिल शीशे के बनाये होते, तोड़ने वाले के हाथ में ज़ख्म तो आये होते।
13- ज़ख्म दे कर भी पूछती है हाल मेरा, जवाब तो नहीं पास पर लाजवाब है ये सवाल तेरा।
14- ज़ख्म ज़माने को दिखा कर हासिल भी क्या होगा, सब तरस खाएंगे कोई इस दर्द से वाखिफ़ भी क्या होगा।

15- खुशिया कम है गम कम नहीं, दवाएं कम है ज़ख्म कम नहीं।
16- कुछ शरीर पर लगे हैं कुछ दिल पर लगें है, ज़ख्म कुछ अकेले में लगे हैं तो कुछ भरी महफ़िल में लगें है।
17- ज़ख्म तो कर दिए अब भला सहलाने से क्या होगा, पराया तो कर चुके हो सनम अब भला अपनाने से क्या होगा।
18- ये सफर-ऐ-ज़िन्दगी है यहाँ हर मोड़ पर सबक है, ये दुनिया दिखती मरहम है लगाती नमक है।
19- किसी एक जगह नहीं जगह-जगह लगे है, ज़ख्म दिल पर मेरे बेवजह लगे हैं।

20- रुकते नहीं हम भी ढीट बस चलते रहते हैं, इलज़ाम और जख्म भले जितने मर्ज़ी लगते रहते हैं।
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21- रोते नहीं मगर दर्द कम नहीं है, दर्द इतना बयां कर दे ऐसी अब तक कोई नज़म नहीं है।
22- गैरों ने कोशिश की होगी चोट पहुंचाने की पर ज़ख्म तो हमे अपनों ने ही दिए हैं।
23- वक़्त के पास हर घाव की दवा है, सच वक़्त से बड़ा कोई हक़ीम नहीं है।
24- बस हुनर सीख लिया था ज़ख्मों को छुपाने का, लोग कहने लगे तुझे तो कोई दर्द ही नहीं है।
25- मरहम ना सही एक ज़ख ही दे दो, महसूस तो हो तुम्हे याद है हम।
26- मकान जो गिरता है तो ईंट की गलती नहीं होती, जीब जो कटती है जनाब तो दांत की गलती नहीं होती।
27- तू बदनाम ना हो बस इसी वजह से इन ज़ख्मों का इलज़ाम मैंने क़िस्मत पर डाल दिया।
28- ना ज़ख्म भरे ना शराब सहारा हुई, ना वो लौटे ना मोहोब्बत दोबारा हुई।
29- ज़ख्म जो मेरे दिखते नहीं वो सोचते हैं दुखते नहीं।
30- ज़ख्मों की सजा भले मिली हो मुझे पर मोहोब्बत की अदालत में बेक़सूर था मैं।
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