Insaniyat Shayari
1- बड़े ख़ास लोग भी देखे मगर ये खासियत नहीं मिली, मुझे इंसान बहुत मिले मगर इंसानियत नहीं मिली।
2- बहुत से कागज़ मिल जाते हैं एक खासियत बेच कर, लोग पैसा कमाते हैं आज कल इंसानियत बेच कर।
3- पुण्य नहीं रह गया कुछ दान नहीं रह गया, शरीर रह गया मगर इंसान ना रहा।
4- पहले ज़मीन बनती फिर घर बँट गए, इंसान खुद ही खुद में कितना सिमट गए।
5 – यूँ मत समझना की ये काम किसी अनजान का है, पृथ्वी का ये बुरा हाल काम इंसान का है।
6- कौन किस कौम का है ये सवाल ही ना होता, सिर्फ इंसानियत एक धर्म होता तो ये हाल ही ना होता।
7- कुछ डॉक्टर कुछ वैज्ञानिक तो कुछ विद्वान् बन गए, कुछ बनने के चक्कर में नाजाने कितने इंसान बच गए।
8- एक जानवर दूसरे जानवर का होते देखा है मैंने मगर आज एक इंसान दूसरे इंसान का ना रहा।
9- ना किसी क़यामत से रह गया है ना भगवान् से रह गया है, इंसान को डर बस अब इंसान से रह गया है।
10- दोनों दिन ब दिन जेहरीले हो रहे हैं, अब इंसान और सांप में फ़र्क़ क्या बाकी है।
11- उसूल मर गए झूठी शान ज़िंदा है, इंसानियत मर चुकी है बस इंसान ज़िंदा है।
12- जो मदद कर दे बिना मज़हब देखे आज की तारिख में वो फरिश्ता है, भूल गए हैं सभी सबसे बढ़कर इंसान से इंसान का रिश्ता है।
13- आज लाखों डिग्रीयां हो गई है कॉलेजों में मगर इंसानियत का पाठ अब कोई नहीं पढ़ता।
14- सभी को सभी के आंसू झूठे नज़र आने लगे है, अब लगता है दिल सीने में पत्थर के आने लगे हैं।
15- ये भेस बदलने का दौर आया गजब का है, समझ नहीं आता रावण और इंसान में फ़र्क़ क्या है।
16- कामियाबी ऊपर और इंसानियत नीचे रह गई, पैसे कमाने की ख्वाहिश में इंसानियत कहीं पीछे रह गई।
17- शरीर इंसान के मगर आत्मा कहीं गुम है, यहाँ सबसे पहले हम और बाद में आता तुम है।
18- सबके सर पर मानों हैवानियत सवार है, इंसान के शरीर बाकी है मगर इंसानियत फरार है।
19- देखें करीब से तो भी अच्छा दिखाई दे, एक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे।
20- लिखी जाए तो कभी ऐसी खूबसूरत दास्ताँ हो, ना धर्म से जुड़े ना जाट से जुड़े बस इंसान का इंसान से वास्ता हो।
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21- हवा खराब हो गई चलो कोई गम नहीं, कम से कम इंसान तो अपने दिल साफ़ रखे।
22- जैसा है आज इंसान वैसा ना होता, अगर आज इस दुनिया में पैसा ना होता।
23- अब भला क्या ही कहा जाए इंसान से, जूतों की क़ीमत ज्यादा हो गई है जान से।
24- इनाम मिल रहे हैं ईमान-ऐ-दीन बेच कर, इंसान ज़मीन खरीद रहा है ज़मीर बेच कर।
25- मेरी बीमीरी भी यही और यही मेरी दवा है, मैं इंसान हूँ मेरा सिर्फ पैसा ही सगा है।
26- मेरी जबान के मौसम बदलते रहते हैं, मैं तो आदमी हूँ मेरा ऐतबार मत करना।
27- इंसानियत मरती है तो मर जाने दो, मेरा मक़सद बस अब पैसा बचाना है।
28- अब क्या ही दलील राखी जाएगी ऊपर वाले की अदालत में, जब इंसान ही ज़िम्मेदार है इंसानियत की इस हालत में।
29- समझाने की खातिर यूँ लाखों कबीर ना मरते, आज काश आज इंसानियत ज़िंदा होता तो यूँ ज़मीर ना मरते।
30- ज़रूरी सौ बात की एक बात जान लेना, एक इंसान के होते है कई भेस उस एक इंसान को कई बार जान लेना।