1- बुलाती है मगर जाने का नहीं ये दुनिया है इधर जाने का नहीं।
2- सितारें नोच कर ले जाऊँगा मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं।
3- मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर मगर हद से गुजर जाने का नहीं।
4- वफ़ा* फैली हुई है हर तरफ अभी माहौल मर जाने का नहीं।
5- वो गर्दन नापता है नाप ले मगर जालिम से डर जाने का नहीं।
6- ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो चले हो तो ठहर जाने का नहीं।
7- वबा फैली हुई है हर तरफ अभी माहौल मर जाने का नहीं।
8- लू भी चलती थी तो बादे-शबा कहते थे, पांव फैलाये अंधेरो को दिया कहते थे, उनका अंजाम तुझे याद नही है शायद, और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।
9- हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते, जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते, अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है, उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते।
10- तेरी हर बात मोहब्बत में गँवारा करके, दिल के बाज़ार में बैठे हैं खसारा करके, मैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी, तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।
11- उसे अब के वफ़ाओं से गुजर जाने की जल्दी थी, मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी, मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता, यहाँ हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी।
12- हाथ खाली हैं तेरे शहर से जाते-जाते, जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते, अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है, उम्र गुजरी है तेरे शहर में आते जाते।
13- मैं ने अपनी खुश्क आँखों से लहू छलका दिया, इक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए।
14- बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ।
15- आते जाते हैं कई रंग मेरे चेहरे पर, लोग लेते हैं मजा ज़िक्र तुम्हारा कर के।
16- कहीं बेहतर है तेरी अमीरी से मुफलिसी मेरी, चंद सिक्कों की खातिर तूने क्या नहीं खोया है, माना नहीं है मखमल का बिछौना मेरे पास, पर तू ये बता कितनी रातें चैन से सोया है।
17- उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था, सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला, इक मुसाफिर के सफर जैसी है सब की दुनिया, कोई जल्दी में कोई देर से जाने वाला।
18- यार तो आइना हुआ करते हैं यारों के लिए, तेरा चेहरा तो अभी तक है नकाबों वाला, मुझसे होगी नहीं दुनिया ये तिजारत दिल की, मैं करूँ क्या कि मेरा जहान है ख्वाबों वाला।
19- ज़ुबाँ तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे मैं कितनी बार लूटा हूँ मुझे हिसाब तो दे।
20- कही अकेले में मिलकर झंझोड़ दूँगा उसे जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का इरादा मैंने किया था की छोड़ दूँगा उसे।
21- हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँ, दिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थे, ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर, जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे।
22- जा के ये कह दो कोई शोलो से, चिंगारी से फूल इस बार खिले है बड़ी तय्यारी से बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के ना लिए हमने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से।
23- इस शहर की भीड़ में चेहरे सारे अजनबी, रहनुमा है हर कोई, पर रास्ता कोई नहीं, अपनी-अपनी किस्मतों के सभी मारे यहाँ, एक-दूजे से किसी का वास्ता कोई नहीं।
24- दिलों की बंद खिड़की खोलना अब जुर्म जैसा है, भरी महफिल में सच बोलना अब जुर्म जैसा है, हर एक ज्यादती को सहन कर लो चुपचाप, शहर में इस तरह से चीखना जुर्म जैसा है।
25- जरुरी तो नहीं जीने के लिए सहारा हो, जरुरी तो नहीं हम जिनके हैं वो हमारा हो, कुछ कश्तियाँ डूब भी जाया करती हैं, जरुरी तो नहीं हर कश्ती का किनारा हो। – rahat indori
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