जिंदगी का फलसफा शायरी

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उसको तो सही से बिछड़ना भी नहीं आता जाते-जाते भी खुद को मेरे दिल में छोड़ गये।

पढ़ तो लिया है, पर कैसे फेंक दूँ खुशबू अभी भी बाकी है इन कागज़ों में तुम्हारे हाथों की।

दिल में लगी आग, जब वो ख़फ़ा हुए ये महसूस हुआ तब, जब वो जुदा हुए वफ़ा करके तो कुछ दे न सके वो पर बहुत कुछ दे गए जब वो बेवफ़ा हुए।

एहसासों की नमी बेहद जरुरी है हर रिश्ते में रेत अगर सूखी हो तो हाथों से फिसल ही जाती है।

सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल मज़ा तो जब है , के पैरों में कुछ थकान रहे।

गिरते हुए आँसुओं को कौन देखता है जहां झूठी मुस्कान के दीवाने हों सब।

संवर रहें हैं वो अब किसी और के खातिर पर हम तो आज भी बिखरे हैं उन्ही के खातिर।

कश्मकश यह है, कैसी बसर करें ज़िन्दगी पैरों को काट फैंके या चादर छोटी करें।

दिल में प्यार का आगाज हुआ करता है बातें करने का एक अंदाज हुआ करता है जब तक दिल को नहीं लगती ठोकर, मेरे दोस्त सबको अपने प्यार पर नाज़ हुआ करता है।

जिम्मेदारियां ओढ़ के निकलता हूँ घर से यारो वरना बारिशों में भीगने का शौक तो अब भी है।

हँस उठेगी ज़िंदगी यूँ खुद-ब-खुद औरों के ग़म में रोकर एक बार देखिये।

वफ़ा की कीमत कोई मुझसे आकर पूछे जिंदगी बेच दी मैंने इसे पाने की खातिर।

है मोहलत चार दिन की और है सौ काम करने को हमें जीना भी है, मरने की तैयारी भी करनी है।

ज़िन्दगी बहुत ख़ूबसूरत है, सब कहते थे जिस दिन तुझे देखा, यकीन भी हो गया।

मोहब्बत और मौत की पसंद तो देखो एक को दिल चाहिए और दूसरे को धड़कन।

ख्वाहिश सिर्फ इतनी सी है कि जब मैं तुम्हे याद करूँ तो तुम मुझे महसूस करो।

तुम्हारी मुस्कान से शुरू हुई जिंदगी हमारी मुस्कराते रहना यूं ही ये दिल की तमन्ना है हमारी।

कितना प्यार करते हैं हम उनसे काश उन्हें भी यह एहसास हो जाए कहीं ऐसा न हो वो होश में तब आए जब हम किसी और के हो जाएँ।

छोड़ दिया किस्मत की लकीरों पर यकीन करना जब लोग बदल सकते हैं तो किस्मत क्या चीज़ है।

हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।

मजबूरियों को तुम्हारी समझते-समझते हर बात तुम्हारी समझ गए हम।

जरा सब्र से काम ले प्यारे हर चीज का एक वक्त होता है।

सीढिया उन्हे मुबारक हो जिन्हे छत तक जाना है मेरी मन्जिल तो आसमान है रास्ता मुझे खुद बनाना है।

कितनी फ़िक्र है कुदरत को मेरी तन्हाई की जागते रहते हैं रात भर सितारे मेरे लिए।

आइना भी भला कब किसी को सच बता पाया है जब भी देखो दायाँ तो बायां ही नज़र आया है।

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